नई सोच और सकारात्मक दृष्टिकोण से ही जीवन में बदलाव संभव है। यह बात हाल ही में पिथौरागढ़ जिले के नाबी गांव के दंपत्ति ने साबित कर दी है। वे ऐसी ही नई और सकारात्मक सोच का जीता जागता उदाहरण हैं, जिसकी वजह से आज पिथौरागढ़ का यह सीमांत गांव स्वरोजगार के क्षेत्र में कमाल कर रहा है। हम आपको बताना चाहते हैं कि यह नबी गांव मुख्य शहर से बहुत दूर स्थित है, ग्रामीणों की एक अनूठी पहल ने पूरे गांव को होमस्टे में बदल दिया।
गांव को खाली होने से बचाने के लिए उठाया कदम
आपको बता दें कि साल 2017 में गांव के लोग गरीबी में जीवन जी रहे हैं, उनकी आय का मुख्य स्रोत कृषि और पशुपालन है। अब वे होमस्टे के माध्यम से रोजगार शुरू कर रहे हैं। देखते ही देखते पिछले 4 साल में 35 से ज्यादा परिवार अब होमस्टे बिजनेस कर रहे हैं। पर्यटकों को पारंपरिक शैली में बने घर बहुत पसंद आते हैं, जो होमस्टे का मुख्य आकर्षण होते हैं। यही कारण है कि अब इस गांव में साल भर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
पिथौरागढ़ के दारमा और व्यास घाटी क्षेत्र की संस्कृति समृद्ध है, ये भूमि हैंभोटिया जनजातियों के साथ फला-फूला। व्यास घाटी में स्थित इस गांव की संस्कृति, वेशभूषा, खान-पान और जीवनशैली को करीब से जानने के लिए पर्यटक यहां आते हैं। अब कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) की मदद से यह गांव आज एक मॉडल होमस्टे गांव बन गया है, जिससे ग्रामीणों को घर पर ही रोजगार भी मिलता है।
गांव के बदलाव का श्रेय ग्राम प्रधान सनम नबियाल और उनके पति मदन नबियाल को जाता है, जिन्होंने सभी ग्रामीणों को होमस्टे से जोड़कर गांव की किस्मत बदल दी। ग्राम प्रधान सोनम नबियाल ने बताया कि 2017 में उन्होंने आईएएस अधिकारी धीरज सिंह गर्ब्याल की मदद से होमस्टे शुरू किया।
वहां की पहल के बाद कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्री उनके गांव में रुकने लगे. पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखकर गांव के अन्य लोग भी इस पहल से जुड़ने लगे. आज गांव के लगभग सभी लोग मिलकर पर्यटकों को होमस्टे की सुविधा उपलब्ध कराने का काम कर रहे हैं। चीन सीमा से लगे उत्तराखंड के गांवों में सुविधाओं की कमी के कारण अक्सर पलायन जैसी स्थिति देखने को मिलती है, ऐसे में नाबी गांव ने पर्यटन विकास का एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। लेकिन अब लोग होमस्टे की अवधारणा से अच्छी कमाई कर रहे हैं इसलिए इस स्थान पर पलायन रुक गया है।