उत्तराखंड अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के लिए दुनिया भर में जाना जाने वाला राज्य है। सिर्फ चारधाम के लिए ही सही, यहां कई ऐसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं, जहां आज भी होने वाले चमत्कार लोगों की आस्था को और भी मजबूत बनाते हैं। इन मंदिरों की अपनी-अपनी मान्यताएं और नियम हैं। आज हम आपको चंपावत स्थित सुई विशुंग मंदिर के चार दियोली के बारे में बताने जा रहे हैं,
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लोगो के शरीर में आकर देते हैं आशीर्वाद और करते हैं न्याय
चंपावत स्थित सुई विशुंग मंदिर के चार दियोली के बारे में स्थानीय लोग के अलावा कम ही लोग जानते हैं, जो हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र है। न्याय का आसन यहीं स्थित है। जिसमें सुई और विशुंग देवता डांगरों के शरीर में आकर आशीर्वाद देते हैं। चार द्योली में आदि शक्ति मां भगवती (कड़ई देवी), स्यूंई चौबेगांव स्थित आदि शक्ति मां भगवती, आदित्य महादेव, भूमिया देवता और पौ गांव स्थित मस्ता मंडली और गलचौड़ा के डांगरियों और पुजारियों को प्रमुख स्थान मिला है।
चार दियोली में से एक कर्णकरायत में स्थित इस मंदिर में आज भी लोगों को अलौकिक शक्ति का एहसास होता है। यहां एक छोटे से कांटेदार पेड़ में मां कढ़ाई का वास माना जाता है। इसी तरह, चौबे गांव स्थित मां भगवती और आदित्य महादेव के मंदिर में भी पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मंदिरो में पुजारी बनने के लिए देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा
इन मंदिरों के दर्शन के बाद चार द्योली में शामिल पऊ के चौनकांडा गांव में स्थित मोस्टा मंदिर के दर्शन करना भी जरूरी है, अन्यथा चार दिओली आशीर्वाद का फल प्राप्त नहीं होगा। मां कड़ाई देवी का मंदिर जितना अलौकिक है, उतनी ही खास इन मंदिरों से जुड़ी परंपराएं भी हैं।आज भी चारों दयोली मंदिरों के पुजारी नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। पुजारी साल भर शुभ त्योहारों पर 25 गांवों की परिक्रमा करते हैं और दूध, अक्षत और घी इकट्ठा करके मंदिरों में चढ़ाते हैं।
वर्तमान में गोविंद बल्लभ चौबे विशुंग के मां कड़ाई मंदिर और सुई के मां भगवती मंदिर के पुजारी हैं और गिरीश पुजारी आदित्य महादेव मंदिर के पुजारी हैं। मस्त मंडली मंदिर के पुजारी केशव दत्त चणकन्याल हैं। मंदिर के पुजारी सख्त नियमों से बंधे होते हैं।
भोग बनाने के लिए नंगे पांव चलकर मांगे हैं 25 गांव से भिक्षा
ये पुजारी के लिए पालन करने के लिए बहुत सख्त नियम हैं। उन्हें एक साल तक जूते या चप्पल पहनने की इजाजत नहीं है। सर्दी हो या गर्मी, बारिश हो या बर्फबारी, हर त्योहार में उन्हें नंगे पैर चलना पड़ता है और विशुंग के 20 गांवों और सुई के पांच गांवों की परिक्रमा करके घर-घर से भिक्षा के रूप में चावल, दूध और घी लाना पड़ता है, जो उन्हें दिया जाता है।
देवी-देवता. . पुजारी पूरे वर्ष ब्रह्मचर्य का व्रत रखते हैं। उन्हें वर्ष की अवधि के दौरान केवल मंदिर में ही निवास करना होता है। चैत्र माह और शारदीय नवरात्र में रामनवमी की रात को न्यायपीठ स्थापित की जाती है, जिसमें भक्त अपने देवता से आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।
सुई विशुंग मंदिर पहुंचने के साधन
सड़क मार्ग द्वारा: सुई विशुंग मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख स्थानों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी कश्मीरी गेट दिल्ली से हरिद्वार, देहरादून, ऋषिकेश और श्रीनगर के लिए बसें उपलब्ध हैं। इन जगह से सुई विशुंग मंदिर के लिए बसें और टैक्सियां आसानी से उपलब्ध हैं, सुई विशुंग मंदिर अन्य जगह से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ, स्थित है जो NH9 से जुड़ा है।
ट्रेन द्वारा: सुई विशुंग मंदिर के निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार हैं। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन, सुई विशुंग मंदिर ऋषिकेश भारत के प्रमुख स्थलों के साथ रेलवे नेटवर्क द्वारा जुड़ा हुआ है।
- दिल्ली से सुई विशुंग मंदिर की दूरी: 420 K.M.
- देहरादून से सुई विशुंग मंदिरकी दूरी: 430 K.M.
- हरिद्वार से सुई विशुंग मंदिर की दूरी: 378 K.M.
- ऋषिकेश से सुई विशुंग मंदिर की दूरी: 394 K.M.
- चंडीगढ़ से सुई विशुंग मंदिर की दूरी: 573 K.M.
हवाई मार्ग द्वारा: नैनी सैनी हवाई अड्डा सुई विशुंग मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा है जो लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दैनिक उड़ानों द्वारा दिल्ली से जुड़ा हुआ है। नैनी सैनी हवाई अड्डे से श्रीनगर के लिए निजी टैक्सियाँ अक्सर उपलब्ध रहती हैं।